अजीब अनसुलझी पहेली है मसाइलों के बाज़ार में जज़्बातों की भीड़ है फिर भी ज़िन्दगी अकेली है कल अचानक के अँधेरे ने चुराई नींद उनकी वो कल को ढूंढते रहे और कल उनसे छिपता रहा यूँ ही खेलती है कुछ हँसी -ग़म की लुकाछिपी रुख़ पर चलता है सदा अश्क़ो -मुस्कुराहटों का सिलसिला वो हैं कोई किताब जहाँ हज़ारों पन्नों की लिखावट में कई किरदारों में नज़र आती है कहानी एक ही खूबसूरत कोई हाँ खूबसूरत है वो कि इंद्रधनु के रंग लिए बनाती है तस्वीर हँसीं कुछ अपना ही ढंग लिए उलझती लफ़्ज़ों में लिखी एक हँसीं सी पहेली है है लोग बेशुमार मगर ज़िन्दगी अकेली है
बहुत कुछ कहती हैं दो रतजगी आँखें करती है बयां बीते दिन की दास्ताँ कोई वाकया कमदर्द सा कि जिससे लगी चोट कोई या फिर हसरत कोई टूटा जो सच के आईने में उन आँखों के उजले पन्नो पर लिखें है कई ख्वाबों के ग़ज़ल ओढ़े हैं कुछ दर्द के लिहाफ़ और कुछ अभी है अधूरे से शायद अरसे से है ठहरा उन आँखों में कोई बादल गहरा जिससे ज़हन में नमी सी है पर एक बरसात की कमी सी है नक्शा है दिल के रास्तों का एक नींद की तलाश भी है है उम्मीदों का दिया जलता सा और ग़म का कुछ एहसास भी है क्या करें की रुकती नहीं जज़्बातों की खामोश नदी फूट पढ़ती है आँखों की गोद से बहती है बना अपना ही रास्ता बहुत कुछ कहती हैं दो रतजगी आँखें करती है बयां बीते दिन की दास्ताँ...
घिर आए हो तुम आज फिर से वो सावन बनकर ज़हन में उठी मिटटी की महक और आँखें फिर से बरसने लगी महक उसी भीगी सी मिटटी की ताज़े है जहाँ आज भी शायद तुम्हारी यादों से भरी तस्वीर लिए तुम्हारे ही क़दमों के निशाँ वो उलझे हुए लफ़्ज़ों के सिलसिले सुलझते थे जहाँ सवाल कई दिलो दिमाग़ की तकरार लिए बेपरवाह से थे वो सवाल जवाब मेरे माज़ी में जब भी देखता हूँ तुमसे न मिल पाता हूँ मैं न मुस्तक़बिल में नज़र आते हो फिर,क्या आज भी हो साथ मेरे ? शायद मेरे वक़्त के पन्नो पर तुम कभी बीते ही नहीं या फिर तुम पर आकर कहीं थम सी गयी है ज़हन की घड़ी शीशे के बने हर आईने में हूँ अब भी अकेला मैं मगर जब भी ख़ुद से मिलता हूँ मुझे तुम से घिरा पाता हूँ देखा जो आज भी इधर उधर हैराँ हूँ हर जगह तुम्हे पाकर हाँ आज भी हो तुम साथ मेरे मेरी बातों के हमसफ़र