अर्ध-विराम समय के काफिले का ,
कुछ ठहरे से पलों का
सुष्क-वृक्ष की डालों से
वक़्त की कुछ बूँदें गिरी
उड़ चली सपनों के पंख लिए
अर्ध-विराम - है ठहराव कोई
या कि फिर है
थमे से क़दमों की आहट
तेरी लफ़्ज़ों की गूँज लिए
हू-ब-हू तेरी ख़ामोशी जैसी
अर्ध-विराम - लगता है यूँ
कि रुका सा है
ज़िन्दगी का सफर
वीरान से सड़कों के
अनजान से चौराहे पर
या कि फिर ..........
अर्ध-विराम समापन नहीं
आधे-अधूरे फ़साने का
बल्कि आग़ाज़ है वो
बदलाव लिए,
कुछ नए पलों के आने का
अर्ध-विराम कारागार नहीं
कुछ ठहरे से पलों का
सुष्क-वृक्ष की डालों से
वक़्त की कुछ बूँदें गिरी
उड़ चली सपनों के पंख लिए
अर्ध-विराम - है ठहराव कोई
या कि फिर है
थमे से क़दमों की आहट
तेरी लफ़्ज़ों की गूँज लिए
हू-ब-हू तेरी ख़ामोशी जैसी
अर्ध-विराम - लगता है यूँ
कि रुका सा है
ज़िन्दगी का सफर
वीरान से सड़कों के
अनजान से चौराहे पर
या कि फिर ..........
अर्ध-विराम समापन नहीं
आधे-अधूरे फ़साने का
बल्कि आग़ाज़ है वो
बदलाव लिए,
कुछ नए पलों के आने का
अर्ध-विराम कारागार नहीं
ख़्वाबगाह है जागी आँखों का
या है वो सराय जहाँ
रूकती है पल भर के लिए
दौड़ती नब्ज़ों का कारवाँ
या है वो सराय जहाँ
रूकती है पल भर के लिए
दौड़ती नब्ज़ों का कारवाँ
अर्ध-विराम कोई अंत नहीं
ये तो नींद से भरी
अलसायी सी दोपहरी है
जो कहती है -
शाखों की कुछ पत्तियां हरी है अभी
थकावट है तुझे , तू ठहर ज़रा
मैंने एक मुट्ठी ख्वाबों से भरी है अभी
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