Monday, 27 March 2017

अर्ध-विराम ....

अर्ध-विराम  समय के काफिले का ,
कुछ  ठहरे से पलों का 
सुष्क-वृक्ष की डालों से 
वक़्त की कुछ बूँदें गिरी 
उड़ चली सपनों के पंख लिए 

अर्ध-विराम  - है ठहराव कोई 
या कि फिर है 
थमे से क़दमों की आहट 
तेरी लफ़्ज़ों की गूँज  लिए 
हू-ब-हू तेरी ख़ामोशी जैसी 

अर्ध-विराम  - लगता  है यूँ 
कि रुका सा है 
ज़िन्दगी  का सफर
वीरान से सड़कों के 
अनजान से  चौराहे  पर 

या कि फिर ..........  

अर्ध-विराम समापन नहीं 
आधे-अधूरे फ़साने का 
बल्कि आग़ाज़ है वो 
बदलाव लिए,
कुछ नए पलों के आने का 

अर्ध-विराम कारागार  नहीं 
ख़्वाबगाह है जागी आँखों का 
या है वो सराय जहाँ 
रूकती है पल भर के लिए 
दौड़ती  नब्ज़ों  का कारवाँ 

अर्ध-विराम कोई अंत नहीं 
ये तो नींद से भरी 
अलसायी सी दोपहरी है 
जो कहती है  -
शाखों की  कुछ पत्तियां हरी है अभी 
थकावट है तुझे , तू ठहर ज़रा 
मैंने एक मुट्ठी ख्वाबों  से भरी है अभी 



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