कि इल्तिजा है यही
गुज़रते वक़्त की नदी
जहाँ बहता था कभी
मुझे ले चल तू वहीँ
कि मुझे आज नहीं
मेरे होने का यकीन
मैंने देखा था मुझे
तेरी लहरों में कभी
तेरी मझधार में ही
मेरा घर था कभी
ये ठहरी सी ज़मीं
मेरी मंज़िल तो नहीं
कुछ मेरी ही थी खता
कुछ समय का था कहर
की वो बहता ही रहा
मुझको ठहरा के कहीं
देख मुझको तू कभी
हूँ खड़ा अब भी वहीँ
एक हथेली में भरी
कल की कुछ याद लिए
ले चल मुझको वहीँ
जहाँ खोया था कभी
जहाँ जाना था मुझे
तेरी पहचान में ही
गुज़रते वक़्त की नदी
जहाँ बहता था कभी
मुझे ले चल तू वहीँ
कि मुझे आज नहीं
मेरे होने का यकीन
मैंने देखा था मुझे
तेरी लहरों में कभी
तेरी मझधार में ही
मेरा घर था कभी
ये ठहरी सी ज़मीं
मेरी मंज़िल तो नहीं
कुछ मेरी ही थी खता
कुछ समय का था कहर
की वो बहता ही रहा
मुझको ठहरा के कहीं
देख मुझको तू कभी
हूँ खड़ा अब भी वहीँ
एक हथेली में भरी
कल की कुछ याद लिए
ले चल मुझको वहीँ
जहाँ खोया था कभी
जहाँ जाना था मुझे
तेरी पहचान में ही
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