पन्नों पर मिटती सी सियाही
और लफ़्ज़ों की आवाजाही
रुकी सी है क्यूँ चलती घड़ियाँ
कहाँ गए हो तुम ?
फिर से आज तुम्हे ना पाकर
शाम है कुछ गुमसुम
जैसे जाड़े में धूप का खिलना
पर्वत से झरने का गिरना
हो सपनों की इन्द्रधनु तुम
पर बादल में ग़ुम
फिर से आज तुम्हे ना पाकर
शाम है कुछ गुमसुम
बातों की बहती सी दरिया
उस पर सूरज कुछ केसरिया
कुछ बातें थी मरहम जैसी
कुछ झगड़े मासूम
फिर से आज तुम्हे ना पाकर
शाम है कुछ गुमसुम
आज भी है वो मन का कोना
और आँखों का हसना रोना
आज भी लगते हो ख्वाबों सी
मगर नहीं हो तुम
फिर से आज तुम्हे ना पाकर
शाम है कुछ गुमसुम
और लफ़्ज़ों की आवाजाही
रुकी सी है क्यूँ चलती घड़ियाँ
कहाँ गए हो तुम ?
फिर से आज तुम्हे ना पाकर
शाम है कुछ गुमसुम
जैसे जाड़े में धूप का खिलना
पर्वत से झरने का गिरना
हो सपनों की इन्द्रधनु तुम
पर बादल में ग़ुम
फिर से आज तुम्हे ना पाकर
शाम है कुछ गुमसुम
बातों की बहती सी दरिया
उस पर सूरज कुछ केसरिया
कुछ बातें थी मरहम जैसी
कुछ झगड़े मासूम
फिर से आज तुम्हे ना पाकर
शाम है कुछ गुमसुम
आज भी है वो मन का कोना
और आँखों का हसना रोना
आज भी लगते हो ख्वाबों सी
मगर नहीं हो तुम
फिर से आज तुम्हे ना पाकर
शाम है कुछ गुमसुम
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