Wednesday 21 February 2018

वक़्त .....

वक़्त  है सिमटने का 
अपनी दायरों में लौटने का 
कुछ  ख़्वाबों के रतजगों को 
नींद में सुलाने का 

न राह है चाहने का 
न परस्तिश की है वजह 
है वक़्त आरज़ूओं को 
बेवजह मानने का 

कि आसमाँ सा सूना 
है ज़हन का समंदर 
न कश्ती है ना है तूफाँ 
है वक़्त डूबने का 

कह दे कोई किसी से 
कैसे है वक़्त कटता 
कटती  है ज़िन्दगानी 
इस  घोर कश्मक़श में 

था वक़्त का इरादा 
कि वक़्त से लड़ें हम 
अब वक़्त आ चला है 
अपने से हारने का