Monday 19 December 2016

I Can Play No More....

Break me up
In ways  you know
I've stayed enough
Now let me go
This time around
It's a worthless fight
Yes I give up
No wrong, no right

The scarlet hue
Of a twilight sun
Says in my ears
The end's begun
Up looms large
A night that's dark
I am damned in a sea
On a broken ark

As I look up
For your hand to hold
And tell you tales
That are still untold
Yes it pains a lot
That I've had a heart
And shreds of dreams
That were torn apart

Much far beyond 
The depth of sea
Is a place where
I was meant to be 
They all will say
That I've lost to core
But  games  they play
I can play no more





Sunday 18 December 2016

The fading crimson light...

Nothingness all around
And a deepening void within
The mind goes off afar
To times where ends begin

The times to come obscure
Moments in hand give pain
Laughs of an yesterday
Weep today in vain

Nothing to grasp for life
No glimpse of hope is found
Is it worth to hold the mast
Or let the boat be drowned

It's been a while since times
Have hurt in a hundred way
It's a worthless fight with night 
No worth to wait for a day

Long afar a sun
Takes a plunge in the sea
A dark and crimson gleam
Just fades away like me


Thursday 24 November 2016

अनसुनी कहानी .....

कोई अनसुनी कहानी 
या अधूरा सा  किस्सा है 
इस सफ़र के सूनेपन में 
कुछ मेरा भी हिस्सा है 

कोई आँच तो लगी होगी 
जो यूँ आँख में नमी सी है 
ये टूटना है ख्वाबों का 
या ख़्वाब की कमी सी है 

गुस्ताख़ कोई आंधी थी 
चिराग़ जिससे हारा था 
या न काबिल  ही देखने को 
बाकी कोई नज़ारा था 

मुट्ठी भरी लकीरों में 
उलझी सी ज़िन्दगानी है 
न कल की आस दिखती है 
न अतीत की निशानी है 

कोई आज भी है हैराँ 
जो है आँखों से बहता पानी 
उसे क्या भला पता है 
मेरी अनसुनी कहानी 


Tuesday 6 September 2016

And Then It Rained.....

The sun that shone
Was overly bright
The dried up earth 
Had no respite
In blows of wind
Sheer hot and dry
A sapling stood
With a silent sigh

Her delicate being
Withered in heat
She had no more
Her covering sheath
She bore the brunt
Of a breeze unkind
Kept looking around
No one to find

Feeling quite lost 
In her time of pain
She thought her life
Will vile in vain
In intense fear
Of her dream's demise
A cloud rose up
From her moistened eyes

The shade of the sky
Saw a gradual change
It turned scarlet
At a distant range
The swelled up cloud
Could no more be chained
Its heart poured out
And then it rained




Journey So Far....

I've walked along
Some paths unknown
Conversing with
My thoughts alone
The journey's tales
And reminiscence 
Is all  I have 
As life's essence

I've had let go
What wasn't mine
For what didn't come
I have no pine
Few seeds of thought
Is all I keep
Some sprouts of hope
Is what I reap

In drifting thoughts
Of an yesterday
I've not poisoned
My time today
For a distant fear
Of a day not near
I have not missed
A moment's cheer

Till so far
I've walked along
And have done deeds
Both right and wrong
Between the spheres
Of a smile and a tear
The life lives on
Without a fear




Monday 5 September 2016

When Moments Drop.....

Moist, heavy and cold
Thus the breeze blows
A drop of dew glows
Freshly fallen from an eye

Sounds of silence roar
Breakers batter the shore
The wall can take no more
Salt has eaten its core

Too much time has passed
With a load of nothings amassed
The weight that doesn't pain
But signs of hurt remain

The ghosts of yesterday
Haunt the woods today 
In twisted trails of mind
Hide and seek they play

Tough to still withstand
The humble castle of sand
Crumbles upon its weight
Gives up the fight with fate

Inside the rusty clock
Times have come to a stop
A pair of sleepless eyes
Just watch the moments drop




तसव्वुर का दीवाना .....

कल मिला एक दीवाने से 
वो तसव्वुर के बाज़ार में 
चंद ख्वाबों की ख्वाइश लिए 
अपनी नींद बेच रहा था 

हाथ लिए बुझता सा चिराग़ 
जिसकी कालिख़ आँखों में  समायी थी 
रात की सियाह को टटोलता 
आँधियों की फ़िराक  थी उसे 

थी हक़ीक़त की दुनिया कहाँ 
ख्वाबों सी खूबसूरत  कभी 
वो दिलकशी का आशिक़ था 
उसे जागने की आदत न थी 

एक उफनती नदी में वो 
हाथ डाले बैठा था 
उसकी किस्मत ने दम तोड़ा था 
वो लकीरों को बहा आया 

हाँ था कुछ  ऐसा दीवाना  
ख्वाबों की कद्र करता था 
सुला के जज़्बातों को आज 
नींद बेच रहा था वो 



सच या फ़रेब .....

नज़रें दग़ा करती है 
या है शायद यादों का फ़रेब 
जो दिखता है वो सच है ?
या गुज़रे लम्हों की कब्र कोई 

सूखी सी मिटटी उड़ती है 
आँखों को बड़ी चुभती है 
नहीं है अब खुशबू भीनी 
है बस काटों की चुभन 
और थोड़ा सा किरकिरापन 

वो फूल जो गिराए थे कभी 
किसी की रहमदिली लेकर 
हज़ार टुकड़ों में बिखरे हैं 
ले सरसराहट सिहरन से भरी 
बदहाल ही अपने रंग ढूँढ़ते हैं 

अब तो आईना भी झूठा है 
या फिर कुछ मुझसे रूठा है 
बैठा है अश्क़ों की कब्रगाह में 
और मेरी आँखों से 
ख्वाबों का पता पूछता है 


Sunday 4 September 2016

सवालों के निशान ....

नाकाम सी रहती है 
हर कोशिश ,
चुप रहने की जद्दोजहद
अपने सवालों को 
ज़हन में दफ़्न करने का फन 
बेकार ज़ायर होती है 

पढ़ लेते हो क्यों ?
महज़ एक किताब की तरह  
चहरे पर लिखी कहानी 
जिसका न है रंग कोई 
जिसे अश्क़ों की स्याही से 
कई बार लिखी है हमने 

पहना  तो है नक़ाब कई 
पर सब कुछ है यूँ बेअसर 
तुम्हारी ख़ामोशी की आवाज़ 
यूँ ही पहुँच जाती है मुझ तक 
उसी ख़ामोशी की गूँज 
मेरी शक्ल पर उभरती है 
और दिखता है तुम्हे 
चहरे पे सवालों के निशान 

Tuesday 30 August 2016

अनसुलझी पहेली...

अजीब अनसुलझी पहेली है 
मसाइलों के बाज़ार में 
जज़्बातों की भीड़ है 
फिर भी ज़िन्दगी अकेली है 

कल अचानक के अँधेरे ने 
चुराई नींद उनकी 
वो कल को ढूंढते रहे 
और कल उनसे छिपता रहा 

यूँ ही खेलती  है कुछ 
हँसी -ग़म की लुकाछिपी 
रुख़ पर चलता है  सदा 
अश्क़ो -मुस्कुराहटों का सिलसिला 

वो हैं कोई किताब जहाँ 
हज़ारों पन्नों की लिखावट में 
कई किरदारों में नज़र आती  है 
कहानी एक ही खूबसूरत कोई 

हाँ खूबसूरत है वो 
कि इंद्रधनु के रंग लिए 
बनाती है तस्वीर हँसीं 
कुछ अपना ही ढंग लिए 

उलझती लफ़्ज़ों में लिखी 
एक हँसीं सी पहेली है 
है लोग बेशुमार मगर 
ज़िन्दगी अकेली है 

Wednesday 17 August 2016

रतजगी आँखें ....

बहुत कुछ कहती हैं 
दो रतजगी आँखें 
करती है बयां 
बीते दिन की दास्ताँ 

कोई वाकया कमदर्द सा 
कि जिससे  लगी चोट कोई 
या फिर हसरत कोई 
टूटा जो सच के आईने में 

उन आँखों के उजले पन्नो पर 
लिखें है कई ख्वाबों के ग़ज़ल 
ओढ़े हैं कुछ दर्द के लिहाफ़ 
और कुछ अभी है अधूरे से 

शायद अरसे से है ठहरा 
उन आँखों में कोई बादल गहरा 
जिससे ज़हन में नमी सी है 
पर एक बरसात की कमी सी है 

नक्शा है दिल के रास्तों का  
एक नींद की तलाश  भी है 
है उम्मीदों का दिया जलता सा 
और ग़म का कुछ एहसास भी है 

क्या करें की रुकती नहीं 
जज़्बातों की खामोश नदी 
फूट पढ़ती है आँखों की गोद से 
बहती है बना अपना ही रास्ता

बहुत कुछ कहती हैं 
दो रतजगी आँखें 
करती है बयां 
बीते दिन की दास्ताँ...  


Thursday 11 August 2016

बातों के हमसफ़र ......

घिर आए हो तुम आज 
फिर से वो सावन बनकर 
ज़हन में उठी मिटटी की महक 
और आँखें फिर से बरसने लगी 

महक उसी भीगी सी मिटटी की 
ताज़े है जहाँ आज भी  शायद 
तुम्हारी यादों से भरी तस्वीर लिए 
तुम्हारे ही क़दमों के निशाँ 

वो उलझे हुए लफ़्ज़ों के सिलसिले 
सुलझते थे जहाँ सवाल कई 
दिलो दिमाग़ की तकरार लिए 
बेपरवाह से थे वो सवाल जवाब 

मेरे माज़ी में जब भी देखता हूँ 
तुमसे न मिल पाता हूँ मैं 
न मुस्तक़बिल में नज़र आते हो 
फिर,क्या आज भी हो साथ मेरे ?

शायद मेरे वक़्त के पन्नो पर 
तुम कभी बीते ही नहीं 
या फिर तुम पर आकर  कहीं 
थम  सी गयी है ज़हन की घड़ी 

शीशे के बने हर आईने में 
हूँ अब भी अकेला मैं मगर 
जब भी ख़ुद से  मिलता हूँ 
मुझे तुम से घिरा पाता हूँ 

देखा जो आज भी इधर उधर 
हैराँ  हूँ हर जगह तुम्हे पाकर 
हाँ आज भी हो  तुम साथ मेरे 
मेरी  बातों के हमसफ़र 


Wednesday 29 June 2016

वही हो तुम ...

खामोश नदी सी बहती हो 
हाँ वही हो तुम 
जो मेरी आँखों में रहती हो 

उम्र भर महसूस किया 
तुमने मेरे जज़्बातों को 
मुझसे मेरी बात सुनी 
जो लफ्ज़ कभी कह न सके 

यह जानते हो तुम 
है तुम में सितारों की चमक 
फिर भी हर अँधेरे में 
हमसफ़र रहे हो मेरे 

यह जानता हूँ मैं शायद 
मरासिम है कुछ ऐसे तुमसे 
यहाँ अल्फ़ाज़ों के जाल में 
जज़्बात नहीं उलझते हैं 

आज आए  हो तुम 
फिर उसी सावन को लिए 
मेरे ख्वाबों का टुकड़ा लेकर 
मुझे, मुझसे मिलाने के लिए 

बेशक्ल, बेज़ुबान हो मगर 
हर दर्द मेरा सहती हो 
ज़हन की सूखी रेतों पर 
बन के नमी रहती हो  

खामोश नदी सी बहती हो 
हाँ वही हो तुम 
जो मेरी आँखों में रहती हो 


Tuesday 7 June 2016

अपनी बातें....

फुर्सत से मिलोगे 
तब होंगी बातें 
वक़्त की गलियारों से 
गुज़रते हुए हम 
कर लेंगे बातें 

चलेगी मंद हवा सोंधी सी 
हटेगी धूल ज़हन पर जमी 
परत दर परत 
खुलेंगे दिलों के बहीखाते 
तब आपस  कर लेंगे 
हम ग़मों का हिसाब-किताब 

होगी बारिश  हल्की सी 
तुम्हारी आँखों के सावन की 
और मेरी ख़ामोशी 
मेरे  दर्द के अलफ़ाज़ होंगे 
होगी कहानियों की अदला -बदली 
हर  कहानी में  हम होंगे

ज़िन्दगी के रोशन से रंगमंच से 
थके से होंगे हम 
कई किरदार निभाते शायद 
अपने मुखौटों को दरकिनार किये 
कुछ पल कर लेंगे अपनी बातें  
फुर्सत से मिलोगे  , 
तब होंगी बातें  









Monday 6 June 2016

मुट्ठी भर हसरतें ....

बस मुट्ठी भर थी हसरतें 
गिरा आया था जिन्हे 
बढ़ाया था जो हाथ कभी 
किसी का हाथ थामने के लिए 

अब हथेली का सूनापन 
दिल से गिला  करता है 
झगडती हैं लकीरें 
उलझती रहती हैं 
किस्मत की राहें सूनी 
उन लडख़ड़ाती लकीरों में 

निगाहें चौंक उठती है अक्सर 
अपना ही अक्स देखकर 
कुछ अंजान सा दिखता अब 
ख़ुद का ही वजूद ख़ुदको 
जिससे पहचान थी कभी 
वो कहीं खो सा गया 

खोला जो  पिंजरा दिल का 
उड़ गया ख्वाबों का परिंदा 
खो गया धुंए के गुब्बारों में 
फिर ना आया कभी 
दिल में घर  बसाने को 
छोड़ गया चंद तिनके गिनकर 
चुभते हैं जो काँटों की तरह 

अब न जलता है चिराग़ 
उठता है अब सिर्फ़ धुआँ 
सन्नाटों की चीख़ भरी 
सर्द हवा बहती हैं 
जिस  आज के ख़ातिर 
कभी अपना कल खोया था 
आज  लगता है कहीं शायद  
मेरा वो कल बीत गया  




Sunday 5 June 2016

आँखें .....

थी कलियाँ वो कुछ अधखिली सी 
कुछ ज़ाहिर  कुछ छिपी हुई सी 
चमक सितारों की थी उनमे 
और ग़ज़ल कोई लिखी हुई सी 

कुछ लहराई हवा के झोके 
सा था उनका उठना गिरना 
कुछ सागर की गहराई थी 
और कुछ चाँद से गिरता झरना 

दो लफ़्ज़ों की कितनी बातें 
हर लम्हा एक शाम  रूमानी 
बस  दो पल  में कह दी उन ने 
खूबसूरत सी कई कहानी 

सपनों  सा था हँसना  उनका 
जगी कटेंगी फिर कुछ रातें 
रात सुबह सी कर दें रोशन 
कुछ कलियों सी थी वो आँखें  




Friday 3 June 2016

आज भी वही हो.....

क्यों कहते हो ?
कि बदले से लगते हो तुम 
कि वक़्त ने बक्शा नहीं 
बढ़ते पलों के सितम से 

मुझे दिखती है वही शक्ल 
आँखें मूँद कर भी 
जो तसव्वुर से कभी 
दिल में उतर आई थी 

है निगाहें वही 
जिनसे थी राहें रौशन 
और आँखें आज भी है 
रातों के सितारों की तरह 

झूठ है सब कहता 
जो आईना तुमसे 
वही हो  आज भी तुम 
बिलकुल वैसी, तुम जैसी 

ये बदलाव का फरेब 
महज़ ज़हन का है 
तुम्हारी दिलकशी को 
दिल ही समझ सकता है 
आईने की कोई 
आँख नहीं होती है 
न ज़हन और न ही 
दिल होता है

हो सके देख लो 
खुद को मेरी निगाहों से 
कि मेरी आँखों  में 
वक़्त बीतता नहीं 
वो तो थमा सा है 
तुम्हारे साथ  तुम्हारी यादें लिए
उसी मोढ़ पर 
हुए थे रुख्सत जहाँ  

एहसास ......

देखता हूँ तुम्हे , बस तुम्हे ही 
ये नज़रों का फ़रेब  नहीं 
हक़ीक़त है जिसे जीता हूँ 
गुज़रता हूँ जिसमे मैं 
वक़्त के साथ ,वक़्त की तरह 

ढलती हुई दोपहरी की 
उतरती हुई धूप  हो 
या फिर शाम से सजी हुई 
पहाड़ों की चोटियां 
हो ओस में भीगी सी सुबह 
या धुंद  में छिपी रात 
हर वक़्त ,हर घड़ी , हर पड़ाव 
समय की हार में पिरोया 
हर एक चमकता हुआ पल 
इन सभी में तुमको पाया है 

तुमको देखा है 
खिलते हुए फूलों में 
छुआ है तुमको ही 
बारिश के गिरते पानी में 
महसूस किया है तुमको 
हर सांस के आने में 
और हर जाती सांस में 
ली है रुखसत तुमसे ही 
फिर से मिलने का वायदा लेकर 

सुना है  आवाज़ तुम्हारी 
हवा से हिलते पत्तों से 
लगा था  यूँ  तुम आये हो 
सौंधी खुशबू जब  आई थी 
ग़र सच है यह 
की तुम हो  ही नहीं 
फिर है कैसा यह एहसास  ?
तुम्हारे न होने  में  ही 
तुम्हारे होने का  एहसास 




उस दिन कर लेना याद ....

उस दिन कर लेना याद मुझे 
जब वक़्त ज़रा सा थम जाए 
बीती घड़ियों की बूंदे जब 
दिल के कोने में जम जाए 

कर लेना तुम याद मुझे
जब यादें बोझिल हो जाए 
वक़्त के पन्नों की स्याही 
बेवक़्त ही धूमिल हो जाए 

तुम से तुम रुस्वा हो जब 
मुझ में मेरा मन दिख जाए 
करना याद मुझे उस दिन 
जब रंग आँखों का मिट जाए 

करना याद मुझे तुम तब 
जब कलियाँ सब मुरझाई हो 
जब साथ तुम्हारा देने को 
बस अपनी ही परछाई हो 

सूरज की किरणे मध्यम हो
रातों के सितारे सो  जाएँ  
जब सपनों के स्वर्ण-हिरण 
सब अंधियारों में खो जाए 

हो सकता है जब याद करो 
मैं  लौट के ना आ पाऊंगा 
पर यकीं करो गर दर्द में हो 
मैं दूर से अश्क़ बहाऊंगा 

ये समय की धारा है पागल 
यहाँ हर पल हल चल रहती है 
बेवजह ही नदियाँ यादों की 
मेरे आँखों से बहती है 




Thursday 2 June 2016

असली नकली ...

वो  बचपन की अंगुलियाँ छोटी 
पकड़ के छोटी चाय की प्याली 
खेल खिलौने की तश्तरियाँ 
सब कुछ नकली सब कुछ खाली 

हवा की चुस्की लेकर हसना 
और हवा से बातें करना 
थी  अपनी एक नकली दुनिया 
रोज़ बिगड़ना रोज़  संवरना 

नकली  था वो खेल पुराना 
बस सपनों का ताना बाना 
असली पर था साथ सभी का 
था असली वो हँसना गाना 

आज मिलें जब मुद्दत बीते 
बह निकली जामों की धारा 
असली प्याली मदिरा असली 
असली है वो रौनक सारा 

असली जीवन के रंग ओढ़े 
लिए  समय  की कुछ  सौगातें 
कुछ क़डवाहट मन मे लेकर 
हँस कर  कर  लेते हैं बातें 

सीख लिया जो जीना हमने 
लुप्त हुआ है जीवन सारा 
पाकर  ज्ञान भरी दुनिया  का 
खोया मन ख्वाबों सा प्यारा 

असली  मायाजाल   में लेकिन 
उलझ गयी है एक कहानी
बिखर गए  हैं खेल खिलौने 
वृद्ध हो गयी है नादानी 







Wednesday 6 April 2016

ढूंढता किसे है नादान ?

ढूंढता किसे है नादान ?
वो अक्स जो उतरा था कभी
तेरे ख्वाबों की दरिया में
दबे पाँव तेरा तसव्वुर लिए
या फिर वो आवाज़ ?
जो गूंजी थी दिल के कोने में
अरमानों का  नज़्म लिए,
चाहतों  के  गीत लिए

किसे खोजता है इस अँधेरे में ?
चाँद जो उतरा था ज़मीन पे कभी
या वो सितारा जो टूटा था आसमां से
और आकर चमका था तेरे आँखों में
इन सूनी पड़ी रात की सड़कों पर
क्या टटोलता है इधर उधर ?
ढूंढता है किस के क़दमों के निशां
किसे छूने को हाथ बढ़ाता है बता

कौन है तुझे जिससे है उम्मीदें अब भी
कौन है यहाँ तेरा बस तेरे सिवा
न जाने तुझे अब भी क्यों लगता है
फिर उभरेगा वही अक्स तेरे ख्वाबो से
फिर से गूंजेगा ज़हन में कोई गीत नया
और सिमटेगा सितारा कोई निगाहों में
रहता  है हक़ीक़त के दायरे में मगर
बात करता  है बस अपने ख्वाबों से

कुछ शौक़ है यूँ तुझे खुशफहमी का
आज खुश है आँखों में बरसात लिए
तू जानता है कि ये कोई सावन नहीं 
तेरे हिस्से में शायद वो मौसम ही  नहीं 
फिर भी  मरते क्यों नहीं तेरे अरमान 
बेसबब बदहवासी लिए 
ढूंढता किसे है नादान ?



Tuesday 1 March 2016

इल्तिजा ....

ढूंढो न मुझे अब भीड़ भरे बाज़ारों में 
फेर ली है मैंने आँखें सभी नज़ारों से 
हूँ लापता अपनी ही तलाश में शायद 
अब मुझे गुमशुदा ही रहने दो 

ये रोज़ के मरने जीने का सिलसिला 
मुस्कराहट में लिपटे अश्क़ों का काफिला 
समेट ली है सब दिल की तश्तरी भर कर 
न रोको मुझे पानी की तरह बहने दो 

सैंकड़ों ख्वाबों को जो खुद ने तोड़ा 
हंस के मुस्कुराहटों से मुँह मोड़ा 
आज भीगा है जो ज़मीं मेरे अश्क़ों से 
मेरी आखों में  बीते कल की नमी रहने दो

इस शहर से नहीं रहा  कोई रिश्ता मेरा 
कहीं दूर वीराने में है फरिश्ता मेरा 
हो मुबारक  तुम्हे हर जश्न का रंगीन समां 
सूना है ज़हन सूना ही उसे रहने दो