Tuesday, 25 September 2018

Forever....

A leafless tree,
With endless roots
Aimless growth 
Mindless pursuits
What's the fate of a passing day?
Will night fall?
Who knows?

Still unnerved
The eyes look for,
A certain tomorrow
An image obscure
Wishful thoughts galore!

Deep below the leafless tree
The roots hold on
To mud and nothing
Still in search,
Of a spring,
Deep down within

On way back
To an abandoned home
Directions merge 
In circuitous maze
Which path to take?
Drops of sweat and shiver 
Mind oscillates,
Between never and  forever

About Stories....

How does one prevent?
The flight of time
The mind thinks,
Eyes see
And they think
They exist........

An yesterday's dream
Still flows as a stream
It aches at times
But still,
An obstinate urge
To keep breathing!

Deep down an alley
Labyrinthine and dark
Sightless strides
And silent sighs
Some one walks
Towards nothing

Will this hold?
It's damp and cold,
The fire?
The breeze, the rain?
Universe conspires
Inflicts pain

But then what else?
No one hears
Nor sees the pain
But they speak
Myths unfold,
Stories are told


Monday, 24 September 2018

पूरब की हवा ....

झुलसती धूप में छाँव से आए थे 
न जाने तुम किस गाँव से आए थे 

न देखा न सुना सिर्फ महसूस किया 
कुछ इस तरह दबे पाँव से आए थे 

जहाँ रुका सा था धड़कनों का काफ़िला 
तुम वक़्त के उसी पड़ाव से आए थे 

सर्द रातों की ठिठुरन  में तुम 
बनकर एक अलाव से आये थे 

उभरी थी चट्टानों पर उम्मीदों की शक्ल 
जब तुम दरिया के बहाव से आये थे 

लेकर यादों की भीगी सी महक 
तुम पूरब की हवाओँ से आये थे 

अब भी भागती है ज़िन्दगी बेवजह 
तुम्ही थे जो एक ठहराव से आये  थे 








Friday, 21 September 2018

आइना ....

फ़िरते हुए यूँ ही बेवजह 
कल चला आया था वहीँ 
वहीँ जहाँ रुके थे क़दम 
जहाँ कभी चला सा था 
रुके से वक़्त का कारवाँ 

मुझे मेरी फ़िराक़ थी 
जो ढूंढने चला था मैं 
कहाँ जुदा हुआ था मैं 
ख़ुद ही अपने आप से 

था रेत से सना हुआ 
और ज़रा डरा हुआ 
ज़ख्म के निशाँ भी थे 
वो अक्स कुछ अजीब थी 
मेरी तरह शक्ल लिए 

नब्ज़ चल रहा था पर 
थी साँस कुछ थमी हुई 
होठों पे काँपता था कुछ 
नाराज़ सा लगा था वो 

अलग ही  कुछ लगा था वो 
पहचान  से परे  मेरे 
मगर कशिश अजीब थी 
उसकी बेज़ुबाँ निगाह की 

लौट आ गया था मैं 
ज़हन में कुछ कसाव  था 
वो कौन था  पड़ा हुआ 
सीने पर आइना लिए ?


Tuesday, 5 June 2018

Beyond Twilight Hues...

Foot marks.....
All that'l remain
On the shore of an ocean
When memories vane

A pair of feet
Would've walked alone
Back to the beginnings
Of times bygone

Still will flow
The rain-wet breeze
Long beyond
Since breaths would cease

The sun would rise
Like now each day
But a pair of eyes
Would've nothing to say

Following the hue
Of a deep twilight
The sounds will fade
Nothing in sight

Waves would churn
The soil beneath
But find no signs
No shroud no wreath

Into the depths
Both dark and dense
Would lie alseep
Some dream's essence

Wednesday, 21 February 2018

वक़्त .....

वक़्त  है सिमटने का 
अपनी दायरों में लौटने का 
कुछ  ख़्वाबों के रतजगों को 
नींद में सुलाने का 

न राह है चाहने का 
न परस्तिश की है वजह 
है वक़्त आरज़ूओं को 
बेवजह मानने का 

कि आसमाँ सा सूना 
है ज़हन का समंदर 
न कश्ती है ना है तूफाँ 
है वक़्त डूबने का 

कह दे कोई किसी से 
कैसे है वक़्त कटता 
कटती  है ज़िन्दगानी 
इस  घोर कश्मक़श में 

था वक़्त का इरादा 
कि वक़्त से लड़ें हम 
अब वक़्त आ चला है 
अपने से हारने का 



Tuesday, 22 August 2017

बहाना .....

सुनाई देती है आज 
बंद खिड़कियों से आवाज़ 
दिखाई देती है 
बदलते वक़्त की आगाज़ 

फिर भी जाने क्यों 
बावरा सा हो मन 
दौड़ता है पकड़ने को 
एक छूटी हुई धड़कन 

साँसों के काफ़िले से 
दूर पड़ा कोई गाँव 
आँखें ढूँढ़ती  है वहाँ 
यादों की बनी  छाँव 

कि तोड़ी थी जानकर 
दीवारें आस पास की 
एक भरोसे की थी झलक 
कुछ सुकून की आस थी 

उस घर का क्या करूँ मैं 
मुझे छोड़ जो चला था 
जहाँ चिराग़ करने रौशन 
मेरा हौंसला जला था 

झकझोर सा दिया है 
मुझे उसी हवा ने 
समझा जिसे था साँसें 
वो कहर के कारवाँ ने 

नहीं और कुछ है सुनना 
न ही  है कोई  फ़साना 
मेरे कल की महफ़िलों मे 
न है मेरा आना जाना 

उन्हें ख़्वाब  मुबारक़ 
झूठा मगर सुहाना 
मैं तो ख़ाक का बना था 
था ये ज़लज़ला बहाना