Monday, 24 September 2018

पूरब की हवा ....

झुलसती धूप में छाँव से आए थे 
न जाने तुम किस गाँव से आए थे 

न देखा न सुना सिर्फ महसूस किया 
कुछ इस तरह दबे पाँव से आए थे 

जहाँ रुका सा था धड़कनों का काफ़िला 
तुम वक़्त के उसी पड़ाव से आए थे 

सर्द रातों की ठिठुरन  में तुम 
बनकर एक अलाव से आये थे 

उभरी थी चट्टानों पर उम्मीदों की शक्ल 
जब तुम दरिया के बहाव से आये थे 

लेकर यादों की भीगी सी महक 
तुम पूरब की हवाओँ से आये थे 

अब भी भागती है ज़िन्दगी बेवजह 
तुम्ही थे जो एक ठहराव से आये  थे 








No comments:

Post a Comment