फ़िरते हुए यूँ ही बेवजह
कल चला आया था वहीँ
वहीँ जहाँ रुके थे क़दम
जहाँ कभी चला सा था
रुके से वक़्त का कारवाँ
मुझे मेरी फ़िराक़ थी
जो ढूंढने चला था मैं
कहाँ जुदा हुआ था मैं
ख़ुद ही अपने आप से
था रेत से सना हुआ
और ज़रा डरा हुआ
ज़ख्म के निशाँ भी थे
वो अक्स कुछ अजीब थी
मेरी तरह शक्ल लिए
नब्ज़ चल रहा था पर
थी साँस कुछ थमी हुई
होठों पे काँपता था कुछ
नाराज़ सा लगा था वो
अलग ही कुछ लगा था वो
पहचान से परे मेरे
मगर कशिश अजीब थी
उसकी बेज़ुबाँ निगाह की
लौट आ गया था मैं
ज़हन में कुछ कसाव था
वो कौन था पड़ा हुआ
सीने पर आइना लिए ?
कल चला आया था वहीँ
वहीँ जहाँ रुके थे क़दम
जहाँ कभी चला सा था
रुके से वक़्त का कारवाँ
मुझे मेरी फ़िराक़ थी
जो ढूंढने चला था मैं
कहाँ जुदा हुआ था मैं
ख़ुद ही अपने आप से
था रेत से सना हुआ
और ज़रा डरा हुआ
ज़ख्म के निशाँ भी थे
वो अक्स कुछ अजीब थी
मेरी तरह शक्ल लिए
नब्ज़ चल रहा था पर
थी साँस कुछ थमी हुई
होठों पे काँपता था कुछ
नाराज़ सा लगा था वो
अलग ही कुछ लगा था वो
पहचान से परे मेरे
मगर कशिश अजीब थी
उसकी बेज़ुबाँ निगाह की
लौट आ गया था मैं
ज़हन में कुछ कसाव था
वो कौन था पड़ा हुआ
सीने पर आइना लिए ?
No comments:
Post a Comment