Wednesday 29 June 2016

वही हो तुम ...

खामोश नदी सी बहती हो 
हाँ वही हो तुम 
जो मेरी आँखों में रहती हो 

उम्र भर महसूस किया 
तुमने मेरे जज़्बातों को 
मुझसे मेरी बात सुनी 
जो लफ्ज़ कभी कह न सके 

यह जानते हो तुम 
है तुम में सितारों की चमक 
फिर भी हर अँधेरे में 
हमसफ़र रहे हो मेरे 

यह जानता हूँ मैं शायद 
मरासिम है कुछ ऐसे तुमसे 
यहाँ अल्फ़ाज़ों के जाल में 
जज़्बात नहीं उलझते हैं 

आज आए  हो तुम 
फिर उसी सावन को लिए 
मेरे ख्वाबों का टुकड़ा लेकर 
मुझे, मुझसे मिलाने के लिए 

बेशक्ल, बेज़ुबान हो मगर 
हर दर्द मेरा सहती हो 
ज़हन की सूखी रेतों पर 
बन के नमी रहती हो  

खामोश नदी सी बहती हो 
हाँ वही हो तुम 
जो मेरी आँखों में रहती हो 


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