Sunday, 4 September 2016

सवालों के निशान ....

नाकाम सी रहती है 
हर कोशिश ,
चुप रहने की जद्दोजहद
अपने सवालों को 
ज़हन में दफ़्न करने का फन 
बेकार ज़ायर होती है 

पढ़ लेते हो क्यों ?
महज़ एक किताब की तरह  
चहरे पर लिखी कहानी 
जिसका न है रंग कोई 
जिसे अश्क़ों की स्याही से 
कई बार लिखी है हमने 

पहना  तो है नक़ाब कई 
पर सब कुछ है यूँ बेअसर 
तुम्हारी ख़ामोशी की आवाज़ 
यूँ ही पहुँच जाती है मुझ तक 
उसी ख़ामोशी की गूँज 
मेरी शक्ल पर उभरती है 
और दिखता है तुम्हे 
चहरे पे सवालों के निशान 

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