Monday, 5 September 2016

तसव्वुर का दीवाना .....

कल मिला एक दीवाने से 
वो तसव्वुर के बाज़ार में 
चंद ख्वाबों की ख्वाइश लिए 
अपनी नींद बेच रहा था 

हाथ लिए बुझता सा चिराग़ 
जिसकी कालिख़ आँखों में  समायी थी 
रात की सियाह को टटोलता 
आँधियों की फ़िराक  थी उसे 

थी हक़ीक़त की दुनिया कहाँ 
ख्वाबों सी खूबसूरत  कभी 
वो दिलकशी का आशिक़ था 
उसे जागने की आदत न थी 

एक उफनती नदी में वो 
हाथ डाले बैठा था 
उसकी किस्मत ने दम तोड़ा था 
वो लकीरों को बहा आया 

हाँ था कुछ  ऐसा दीवाना  
ख्वाबों की कद्र करता था 
सुला के जज़्बातों को आज 
नींद बेच रहा था वो 



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