खामोश नदी सी बहती हो
हाँ वही हो तुम
जो मेरी आँखों में रहती हो
उम्र भर महसूस किया
तुमने मेरे जज़्बातों को
मुझसे मेरी बात सुनी
जो लफ्ज़ कभी कह न सके
यह जानते हो तुम
है तुम में सितारों की चमक
फिर भी हर अँधेरे में
हमसफ़र रहे हो मेरे
यह जानता हूँ मैं शायद
मरासिम है कुछ ऐसे तुमसे
यहाँ अल्फ़ाज़ों के जाल में
जज़्बात नहीं उलझते हैं
आज आए हो तुम
फिर उसी सावन को लिए
मेरे ख्वाबों का टुकड़ा लेकर
मुझे, मुझसे मिलाने के लिए
बेशक्ल, बेज़ुबान हो मगर
हर दर्द मेरा सहती हो
ज़हन की सूखी रेतों पर
बन के नमी रहती हो
खामोश नदी सी बहती हो
हाँ वही हो तुम
जो मेरी आँखों में रहती हो
फुर्सत से मिलोगे
तब होंगी बातें
वक़्त की गलियारों से
गुज़रते हुए हम
कर लेंगे बातें
चलेगी मंद हवा सोंधी सी
हटेगी धूल ज़हन पर जमी
परत दर परत
खुलेंगे दिलों के बहीखाते
तब आपस कर लेंगे
हम ग़मों का हिसाब-किताब
होगी बारिश हल्की सी
तुम्हारी आँखों के सावन की
और मेरी ख़ामोशी
मेरे दर्द के अलफ़ाज़ होंगे
होगी कहानियों की अदला -बदली
हर कहानी में हम होंगे
ज़िन्दगी के रोशन से रंगमंच से
थके से होंगे हम
कई किरदार निभाते शायद
अपने मुखौटों को दरकिनार किये
कुछ पल कर लेंगे अपनी बातें
फुर्सत से मिलोगे ,
तब होंगी बातें
बस मुट्ठी भर थी हसरतें
गिरा आया था जिन्हे
बढ़ाया था जो हाथ कभी
किसी का हाथ थामने के लिए
अब हथेली का सूनापन
दिल से गिला करता है
झगडती हैं लकीरें
उलझती रहती हैं
किस्मत की राहें सूनी
उन लडख़ड़ाती लकीरों में
निगाहें चौंक उठती है अक्सर
अपना ही अक्स देखकर
कुछ अंजान सा दिखता अब
ख़ुद का ही वजूद ख़ुदको
जिससे पहचान थी कभी
वो कहीं खो सा गया
खोला जो पिंजरा दिल का
उड़ गया ख्वाबों का परिंदा
खो गया धुंए के गुब्बारों में
फिर ना आया कभी
दिल में घर बसाने को
छोड़ गया चंद तिनके गिनकर
चुभते हैं जो काँटों की तरह
अब न जलता है चिराग़
उठता है अब सिर्फ़ धुआँ
सन्नाटों की चीख़ भरी
सर्द हवा बहती हैं
जिस आज के ख़ातिर
कभी अपना कल खोया था
आज लगता है कहीं शायद
मेरा वो कल बीत गया
थी कलियाँ वो कुछ अधखिली सी
कुछ ज़ाहिर कुछ छिपी हुई सी
चमक सितारों की थी उनमे
और ग़ज़ल कोई लिखी हुई सी
कुछ लहराई हवा के झोके
सा था उनका उठना गिरना
कुछ सागर की गहराई थी
और कुछ चाँद से गिरता झरना
दो लफ़्ज़ों की कितनी बातें
हर लम्हा एक शाम रूमानी
बस दो पल में कह दी उन ने
खूबसूरत सी कई कहानी
सपनों सा था हँसना उनका
जगी कटेंगी फिर कुछ रातें
रात सुबह सी कर दें रोशन
कुछ कलियों सी थी वो आँखें
क्यों कहते हो ?
कि बदले से लगते हो तुम
कि वक़्त ने बक्शा नहीं
बढ़ते पलों के सितम से
मुझे दिखती है वही शक्ल
आँखें मूँद कर भी
जो तसव्वुर से कभी
दिल में उतर आई थी
है निगाहें वही
जिनसे थी राहें रौशन
और आँखें आज भी है
रातों के सितारों की तरह
झूठ है सब कहता
जो आईना तुमसे
वही हो आज भी तुम
बिलकुल वैसी, तुम जैसी
ये बदलाव का फरेब
महज़ ज़हन का है
तुम्हारी दिलकशी को
दिल ही समझ सकता है
आईने की कोई
आँख नहीं होती है
न ज़हन और न ही
दिल होता है
हो सके देख लो
खुद को मेरी निगाहों से
कि मेरी आँखों में
वक़्त बीतता नहीं
वो तो थमा सा है
तुम्हारे साथ तुम्हारी यादें लिए
उसी मोढ़ पर
हुए थे रुख्सत जहाँ
देखता हूँ तुम्हे , बस तुम्हे ही
ये नज़रों का फ़रेब नहीं
हक़ीक़त है जिसे जीता हूँ
गुज़रता हूँ जिसमे मैं
वक़्त के साथ ,वक़्त की तरह
ढलती हुई दोपहरी की
उतरती हुई धूप हो
या फिर शाम से सजी हुई
पहाड़ों की चोटियां
हो ओस में भीगी सी सुबह
या धुंद में छिपी रात
हर वक़्त ,हर घड़ी , हर पड़ाव
समय की हार में पिरोया
हर एक चमकता हुआ पल
इन सभी में तुमको पाया है
तुमको देखा है
खिलते हुए फूलों में
छुआ है तुमको ही
बारिश के गिरते पानी में
महसूस किया है तुमको
हर सांस के आने में
और हर जाती सांस में
ली है रुखसत तुमसे ही
फिर से मिलने का वायदा लेकर
सुना है आवाज़ तुम्हारी
हवा से हिलते पत्तों से
लगा था यूँ तुम आये हो
सौंधी खुशबू जब आई थी
ग़र सच है यह
की तुम हो ही नहीं
फिर है कैसा यह एहसास ?
तुम्हारे न होने में ही
तुम्हारे होने का एहसास
उस दिन कर लेना याद मुझे
जब वक़्त ज़रा सा थम जाए
बीती घड़ियों की बूंदे जब
दिल के कोने में जम जाए
कर लेना तुम याद मुझे
जब यादें बोझिल हो जाए
वक़्त के पन्नों की स्याही
बेवक़्त ही धूमिल हो जाए
तुम से तुम रुस्वा हो जब
मुझ में मेरा मन दिख जाए
करना याद मुझे उस दिन
जब रंग आँखों का मिट जाए
करना याद मुझे तुम तब
जब कलियाँ सब मुरझाई हो
जब साथ तुम्हारा देने को
बस अपनी ही परछाई हो
सूरज की किरणे मध्यम हो
रातों के सितारे सो जाएँ
जब सपनों के स्वर्ण-हिरण
सब अंधियारों में खो जाए
हो सकता है जब याद करो
मैं लौट के ना आ पाऊंगा
पर यकीं करो गर दर्द में हो
मैं दूर से अश्क़ बहाऊंगा
ये समय की धारा है पागल
यहाँ हर पल हल चल रहती है
बेवजह ही नदियाँ यादों की
मेरे आँखों से बहती है
वो बचपन की अंगुलियाँ छोटी
पकड़ के छोटी चाय की प्याली
खेल खिलौने की तश्तरियाँ
सब कुछ नकली सब कुछ खाली
हवा की चुस्की लेकर हसना
और हवा से बातें करना
थी अपनी एक नकली दुनिया
रोज़ बिगड़ना रोज़ संवरना
नकली था वो खेल पुराना
बस सपनों का ताना बाना
असली पर था साथ सभी का
था असली वो हँसना गाना
आज मिलें जब मुद्दत बीते
बह निकली जामों की धारा
असली प्याली मदिरा असली
असली है वो रौनक सारा
असली जीवन के रंग ओढ़े
लिए समय की कुछ सौगातें
कुछ क़डवाहट मन मे लेकर
हँस कर कर लेते हैं बातें
सीख लिया जो जीना हमने
लुप्त हुआ है जीवन सारा
पाकर ज्ञान भरी दुनिया का
खोया मन ख्वाबों सा प्यारा
असली मायाजाल में लेकिन
उलझ गयी है एक कहानी
बिखर गए हैं खेल खिलौने
वृद्ध हो गयी है नादानी