Friday, 3 June 2016

आज भी वही हो.....

क्यों कहते हो ?
कि बदले से लगते हो तुम 
कि वक़्त ने बक्शा नहीं 
बढ़ते पलों के सितम से 

मुझे दिखती है वही शक्ल 
आँखें मूँद कर भी 
जो तसव्वुर से कभी 
दिल में उतर आई थी 

है निगाहें वही 
जिनसे थी राहें रौशन 
और आँखें आज भी है 
रातों के सितारों की तरह 

झूठ है सब कहता 
जो आईना तुमसे 
वही हो  आज भी तुम 
बिलकुल वैसी, तुम जैसी 

ये बदलाव का फरेब 
महज़ ज़हन का है 
तुम्हारी दिलकशी को 
दिल ही समझ सकता है 
आईने की कोई 
आँख नहीं होती है 
न ज़हन और न ही 
दिल होता है

हो सके देख लो 
खुद को मेरी निगाहों से 
कि मेरी आँखों  में 
वक़्त बीतता नहीं 
वो तो थमा सा है 
तुम्हारे साथ  तुम्हारी यादें लिए
उसी मोढ़ पर 
हुए थे रुख्सत जहाँ  

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