Thursday, 2 June 2016

असली नकली ...

वो  बचपन की अंगुलियाँ छोटी 
पकड़ के छोटी चाय की प्याली 
खेल खिलौने की तश्तरियाँ 
सब कुछ नकली सब कुछ खाली 

हवा की चुस्की लेकर हसना 
और हवा से बातें करना 
थी  अपनी एक नकली दुनिया 
रोज़ बिगड़ना रोज़  संवरना 

नकली  था वो खेल पुराना 
बस सपनों का ताना बाना 
असली पर था साथ सभी का 
था असली वो हँसना गाना 

आज मिलें जब मुद्दत बीते 
बह निकली जामों की धारा 
असली प्याली मदिरा असली 
असली है वो रौनक सारा 

असली जीवन के रंग ओढ़े 
लिए  समय  की कुछ  सौगातें 
कुछ क़डवाहट मन मे लेकर 
हँस कर  कर  लेते हैं बातें 

सीख लिया जो जीना हमने 
लुप्त हुआ है जीवन सारा 
पाकर  ज्ञान भरी दुनिया  का 
खोया मन ख्वाबों सा प्यारा 

असली  मायाजाल   में लेकिन 
उलझ गयी है एक कहानी
बिखर गए  हैं खेल खिलौने 
वृद्ध हो गयी है नादानी 







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