Sunday, 5 June 2016

आँखें .....

थी कलियाँ वो कुछ अधखिली सी 
कुछ ज़ाहिर  कुछ छिपी हुई सी 
चमक सितारों की थी उनमे 
और ग़ज़ल कोई लिखी हुई सी 

कुछ लहराई हवा के झोके 
सा था उनका उठना गिरना 
कुछ सागर की गहराई थी 
और कुछ चाँद से गिरता झरना 

दो लफ़्ज़ों की कितनी बातें 
हर लम्हा एक शाम  रूमानी 
बस  दो पल  में कह दी उन ने 
खूबसूरत सी कई कहानी 

सपनों  सा था हँसना  उनका 
जगी कटेंगी फिर कुछ रातें 
रात सुबह सी कर दें रोशन 
कुछ कलियों सी थी वो आँखें  




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