Wednesday, 1 July 2015

सफर...

© bhaskar bhattacharya
मुश्किलों का ये है सफर 
काँटों भरी हर राह है 
जो है हौसला 
तो साथ चल
मुझे जूझने की चाह है 

आगे सियाही रात है 
आंधी और बरसात है 
हर मोड़ पर 
खतरों की अब 
मुझको नहीं परवाह है 
जो है हौसला 
तो साथ चल
मुझे जूझने की चाह है 

बुझदिलों  का सफर नहीं 
यहां  डर की  बहती  बयार  है 
है सिसकियों  
का  सिलसिला 
हर सांस  में  कोई  आह  है 
जो है हौसला 
तो साथ चल
मुझे जूझने की चाह है 

वो सफर कभी 
जो ना ख़त्म हो 
जहाँ मंज़िलों 
कि  ना हो फिकर 
ये सफर दिलों 
के है दरम्यां 
यहाँ राह ही पनाह है 
जो है हौसला 
तो साथ चल
मुझे जूझने की चाह है 

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