Saturday, 11 July 2015

अब का यह सावन ....

© bhaskar bhattacharya

जाने  किस बादल  से  बरसा 
अब  का   यह  सावन 
रिक्त  रही  फूलों  की  क्यारी  
भीगा  अंतर्मन 

दूर  कहीं  उन्मुक्त  गगन  में 
या  भीगे  मन  के  मधुवन  में 
सुदूर  चले  जाने  को क्यों 
ये  ह्रदय  करे क्रंदन 
जाने  किस बादल  से  बरसा 
अब  का   यह  सावन 

वो टूटी मदिरा  की प्याली 
जो  वर्षों  से रही  है खाली 
फिर  भर दी  उसे  अश्रु  जल  से 
© bhaskar bhattacharya
कैसा  पागलपन 
जाने  किस बादल  से  बरसा 
अब  का  यह  सावन 

छिद्र  हुआ है काँटों  से मन 
फिर भी  डाली  कर आलिंगन 
मन  को है उस  स्वप्न-पुष्प  से 
ऐसा  आकर्षण 
जाने  किस बादल  से  बरसा 
अब  का  यह  सावन 

सुप्त  ह्रदय  संताप  मे  क्यों  है 
मन भीषण  प्रलाप  में क्यों है 
है टीस  ह्रदय  की  या  फिर  है ये 
स्वप्नों  का खण्डन 
जाने  किस बादल  से  बरसा 
अब  का  यह  सावन 
रिक्त  रही  फूलों  की  क्यारी  
भीगा  अंतर्मन 

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