Friday, 17 July 2015

कब लौटेगा घर ?

चार  पलों  का  है  अफ़साना 
या  हर पल कुछ खोना  पाना 
ढूंढ  नया कोई रोज़ बहाना 
जी लेता दिन भर 
है अंतहीन  सा  सफर 
तू कब लौटेगा घर ? 

आज जो कुछ भी पास नहीं है 
उसकी कल भी आस नहीं है 
धूप का भी एहसास  नहीं है 
चलता है दिन भर 
है अंतहीन  सा  सफर 
तू कब लौटेगा घर ? 

बस सपनों से बातें करना 
इतिहासों  का रंग बदलना 
और कभी आँखों से भरना 
मन का गहरा सागर 
है अंतहीन  सा  सफर 
तू कब लौटेगा घर ? 

हाथ  लिए एक सूखा प्याला 
रोज़ पहुँचता है मधुशाला 
मन कहता कोई आनेवाला 
देगा उसको भर 
है अंतहीन  सा  सफर 
तू कब लौटेगा घर ? 

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