चार पलों का है अफ़साना
या हर पल कुछ खोना पाना
ढूंढ नया कोई रोज़ बहाना
जी लेता दिन भर
है अंतहीन सा सफर
तू कब लौटेगा घर ?
आज जो कुछ भी पास नहीं है
उसकी कल भी आस नहीं है
धूप का भी एहसास नहीं है
चलता है दिन भर
है अंतहीन सा सफर
तू कब लौटेगा घर ?
बस सपनों से बातें करना
इतिहासों का रंग बदलना
और कभी आँखों से भरना
मन का गहरा सागर
है अंतहीन सा सफर
तू कब लौटेगा घर ?
हाथ लिए एक सूखा प्याला
रोज़ पहुँचता है मधुशाला
मन कहता कोई आनेवाला
देगा उसको भर
है अंतहीन सा सफर
तू कब लौटेगा घर ?
या हर पल कुछ खोना पाना
ढूंढ नया कोई रोज़ बहाना
जी लेता दिन भर
है अंतहीन सा सफर
तू कब लौटेगा घर ?
आज जो कुछ भी पास नहीं है
उसकी कल भी आस नहीं है
धूप का भी एहसास नहीं है
चलता है दिन भर
है अंतहीन सा सफर
तू कब लौटेगा घर ?
बस सपनों से बातें करना
इतिहासों का रंग बदलना
और कभी आँखों से भरना
मन का गहरा सागर
है अंतहीन सा सफर
तू कब लौटेगा घर ?
हाथ लिए एक सूखा प्याला
रोज़ पहुँचता है मधुशाला
मन कहता कोई आनेवाला
देगा उसको भर
है अंतहीन सा सफर
तू कब लौटेगा घर ?
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