Wednesday, 1 July 2015

वो लम्हे

© bhaskar bhattacharya
जो बरसते हैं बेझिझक 
उनकी आखों से अभी 
उन निगाहों के लिए 
लोग तरसते थे कभी 

आज जज़्बात पे भी 
हक़ की बात करते हैं 
जो दर और घर भी 
अपना न समझते थे कभी 

मुश्किल है सफर 
खुद को लिए कांधों पर 
उन राहों से जहाँ 
रोज़ गुज़रते थे कभी 

हर आईने में हुमें 
शक्ल वही दिखती है 
जिसके देखे से कई 
 रंग बदलते थे कभी 

ये दुआ  है कि करम है 
की वो  सब भूल गया 
वो लम्हे जिन्हे हम 
जान समझते थे कभी 

2 comments:

  1. Bahut hi badiya sirji...so nice to see u writing....safar chalne dijiye...

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  2. Bahut hi badiya sirji...so nice to see u writing....safar chalne dijiye...

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