ख्वाबों के टुकड़े है हक़ीक़त के सिरहाने में
छूट सा जाता है कुछ हर पल के बीत जाने में
क्या कहूँ किस बात से हूँ बिखरा बिखरा
उम्र बीती है मेरी खुद को समझ पाने में
आज फिर से कई उंगलियां उठी होंगी
जो दुआ दी है मैंने दिल से इस ज़माने में
वो समझते रहे ये भीड़ मेरे जश्न की है
मै भटकता ही रहा शहर के वीराने में
कोई और भी रोता है कुछ मेरी ही तरह
आज मालूम हुआ देखा जो इस आईने में
कोई रिश्ता तो होगा दिल का अंधेरों से
वार्ना कुछ ख़ास नहीं है दिया जलाने में
हर एक लफ्ज़ को अपने से कोई रंग ना दो
कुछ भी नहीं बस दर्द है अफ़साने में
छूट सा जाता है कुछ हर पल के बीत जाने में
क्या कहूँ किस बात से हूँ बिखरा बिखरा
उम्र बीती है मेरी खुद को समझ पाने में
आज फिर से कई उंगलियां उठी होंगी
जो दुआ दी है मैंने दिल से इस ज़माने में
वो समझते रहे ये भीड़ मेरे जश्न की है
मै भटकता ही रहा शहर के वीराने में
कोई और भी रोता है कुछ मेरी ही तरह
आज मालूम हुआ देखा जो इस आईने में
कोई रिश्ता तो होगा दिल का अंधेरों से
वार्ना कुछ ख़ास नहीं है दिया जलाने में
हर एक लफ्ज़ को अपने से कोई रंग ना दो
कुछ भी नहीं बस दर्द है अफ़साने में
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