Sunday, 12 July 2015

क्यों रोता है मन ?

खोज  कोई  निर्जन सा कोना 
क्यों  रोता है  मन ?
इस  भीड़ के कोलाहल  में  भी 
क्यों  भीगे  तेरे  नयन ?

जो  टूटा था  बस  सपना  था 
या  छूटा  कोई  अपना  था 
मुझमे  मुझसा  कुछ नहीं रहा 
यह कहता है  दर्पण 
इसलिए  रोता  है मन 

आज उन्ही  सपनों  को सींचे 
दौड़  रहा मन आँखें मीचे 
ह्रदय -विदीर्ण  कुछ इतिहासों  से 
मिला है  आमंत्रण 
इसलिए रोता है है मन 

तुझ में मेरा कुछ  अंश  दिखे 
मैं  कुछ तुझ सा  ही हो जाऊं 
तेरी स्वप्न -सदृश  उस दृष्टि को 
है व्याकुल मेरे नयन 
खोज कोई  निर्जन सा कोना 
है रोता यह मन 
भीड़ भरे इस कोलाहल  में 
है भीगे मेरे नयन 

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