Monday, 6 June 2016

मुट्ठी भर हसरतें ....

बस मुट्ठी भर थी हसरतें 
गिरा आया था जिन्हे 
बढ़ाया था जो हाथ कभी 
किसी का हाथ थामने के लिए 

अब हथेली का सूनापन 
दिल से गिला  करता है 
झगडती हैं लकीरें 
उलझती रहती हैं 
किस्मत की राहें सूनी 
उन लडख़ड़ाती लकीरों में 

निगाहें चौंक उठती है अक्सर 
अपना ही अक्स देखकर 
कुछ अंजान सा दिखता अब 
ख़ुद का ही वजूद ख़ुदको 
जिससे पहचान थी कभी 
वो कहीं खो सा गया 

खोला जो  पिंजरा दिल का 
उड़ गया ख्वाबों का परिंदा 
खो गया धुंए के गुब्बारों में 
फिर ना आया कभी 
दिल में घर  बसाने को 
छोड़ गया चंद तिनके गिनकर 
चुभते हैं जो काँटों की तरह 

अब न जलता है चिराग़ 
उठता है अब सिर्फ़ धुआँ 
सन्नाटों की चीख़ भरी 
सर्द हवा बहती हैं 
जिस  आज के ख़ातिर 
कभी अपना कल खोया था 
आज  लगता है कहीं शायद  
मेरा वो कल बीत गया  




Sunday, 5 June 2016

आँखें .....

थी कलियाँ वो कुछ अधखिली सी 
कुछ ज़ाहिर  कुछ छिपी हुई सी 
चमक सितारों की थी उनमे 
और ग़ज़ल कोई लिखी हुई सी 

कुछ लहराई हवा के झोके 
सा था उनका उठना गिरना 
कुछ सागर की गहराई थी 
और कुछ चाँद से गिरता झरना 

दो लफ़्ज़ों की कितनी बातें 
हर लम्हा एक शाम  रूमानी 
बस  दो पल  में कह दी उन ने 
खूबसूरत सी कई कहानी 

सपनों  सा था हँसना  उनका 
जगी कटेंगी फिर कुछ रातें 
रात सुबह सी कर दें रोशन 
कुछ कलियों सी थी वो आँखें  




Friday, 3 June 2016

आज भी वही हो.....

क्यों कहते हो ?
कि बदले से लगते हो तुम 
कि वक़्त ने बक्शा नहीं 
बढ़ते पलों के सितम से 

मुझे दिखती है वही शक्ल 
आँखें मूँद कर भी 
जो तसव्वुर से कभी 
दिल में उतर आई थी 

है निगाहें वही 
जिनसे थी राहें रौशन 
और आँखें आज भी है 
रातों के सितारों की तरह 

झूठ है सब कहता 
जो आईना तुमसे 
वही हो  आज भी तुम 
बिलकुल वैसी, तुम जैसी 

ये बदलाव का फरेब 
महज़ ज़हन का है 
तुम्हारी दिलकशी को 
दिल ही समझ सकता है 
आईने की कोई 
आँख नहीं होती है 
न ज़हन और न ही 
दिल होता है

हो सके देख लो 
खुद को मेरी निगाहों से 
कि मेरी आँखों  में 
वक़्त बीतता नहीं 
वो तो थमा सा है 
तुम्हारे साथ  तुम्हारी यादें लिए
उसी मोढ़ पर 
हुए थे रुख्सत जहाँ  

एहसास ......

देखता हूँ तुम्हे , बस तुम्हे ही 
ये नज़रों का फ़रेब  नहीं 
हक़ीक़त है जिसे जीता हूँ 
गुज़रता हूँ जिसमे मैं 
वक़्त के साथ ,वक़्त की तरह 

ढलती हुई दोपहरी की 
उतरती हुई धूप  हो 
या फिर शाम से सजी हुई 
पहाड़ों की चोटियां 
हो ओस में भीगी सी सुबह 
या धुंद  में छिपी रात 
हर वक़्त ,हर घड़ी , हर पड़ाव 
समय की हार में पिरोया 
हर एक चमकता हुआ पल 
इन सभी में तुमको पाया है 

तुमको देखा है 
खिलते हुए फूलों में 
छुआ है तुमको ही 
बारिश के गिरते पानी में 
महसूस किया है तुमको 
हर सांस के आने में 
और हर जाती सांस में 
ली है रुखसत तुमसे ही 
फिर से मिलने का वायदा लेकर 

सुना है  आवाज़ तुम्हारी 
हवा से हिलते पत्तों से 
लगा था  यूँ  तुम आये हो 
सौंधी खुशबू जब  आई थी 
ग़र सच है यह 
की तुम हो  ही नहीं 
फिर है कैसा यह एहसास  ?
तुम्हारे न होने  में  ही 
तुम्हारे होने का  एहसास 




उस दिन कर लेना याद ....

उस दिन कर लेना याद मुझे 
जब वक़्त ज़रा सा थम जाए 
बीती घड़ियों की बूंदे जब 
दिल के कोने में जम जाए 

कर लेना तुम याद मुझे
जब यादें बोझिल हो जाए 
वक़्त के पन्नों की स्याही 
बेवक़्त ही धूमिल हो जाए 

तुम से तुम रुस्वा हो जब 
मुझ में मेरा मन दिख जाए 
करना याद मुझे उस दिन 
जब रंग आँखों का मिट जाए 

करना याद मुझे तुम तब 
जब कलियाँ सब मुरझाई हो 
जब साथ तुम्हारा देने को 
बस अपनी ही परछाई हो 

सूरज की किरणे मध्यम हो
रातों के सितारे सो  जाएँ  
जब सपनों के स्वर्ण-हिरण 
सब अंधियारों में खो जाए 

हो सकता है जब याद करो 
मैं  लौट के ना आ पाऊंगा 
पर यकीं करो गर दर्द में हो 
मैं दूर से अश्क़ बहाऊंगा 

ये समय की धारा है पागल 
यहाँ हर पल हल चल रहती है 
बेवजह ही नदियाँ यादों की 
मेरे आँखों से बहती है 




Thursday, 2 June 2016

असली नकली ...

वो  बचपन की अंगुलियाँ छोटी 
पकड़ के छोटी चाय की प्याली 
खेल खिलौने की तश्तरियाँ 
सब कुछ नकली सब कुछ खाली 

हवा की चुस्की लेकर हसना 
और हवा से बातें करना 
थी  अपनी एक नकली दुनिया 
रोज़ बिगड़ना रोज़  संवरना 

नकली  था वो खेल पुराना 
बस सपनों का ताना बाना 
असली पर था साथ सभी का 
था असली वो हँसना गाना 

आज मिलें जब मुद्दत बीते 
बह निकली जामों की धारा 
असली प्याली मदिरा असली 
असली है वो रौनक सारा 

असली जीवन के रंग ओढ़े 
लिए  समय  की कुछ  सौगातें 
कुछ क़डवाहट मन मे लेकर 
हँस कर  कर  लेते हैं बातें 

सीख लिया जो जीना हमने 
लुप्त हुआ है जीवन सारा 
पाकर  ज्ञान भरी दुनिया  का 
खोया मन ख्वाबों सा प्यारा 

असली  मायाजाल   में लेकिन 
उलझ गयी है एक कहानी
बिखर गए  हैं खेल खिलौने 
वृद्ध हो गयी है नादानी 







Wednesday, 6 April 2016

ढूंढता किसे है नादान ?

ढूंढता किसे है नादान ?
वो अक्स जो उतरा था कभी
तेरे ख्वाबों की दरिया में
दबे पाँव तेरा तसव्वुर लिए
या फिर वो आवाज़ ?
जो गूंजी थी दिल के कोने में
अरमानों का  नज़्म लिए,
चाहतों  के  गीत लिए

किसे खोजता है इस अँधेरे में ?
चाँद जो उतरा था ज़मीन पे कभी
या वो सितारा जो टूटा था आसमां से
और आकर चमका था तेरे आँखों में
इन सूनी पड़ी रात की सड़कों पर
क्या टटोलता है इधर उधर ?
ढूंढता है किस के क़दमों के निशां
किसे छूने को हाथ बढ़ाता है बता

कौन है तुझे जिससे है उम्मीदें अब भी
कौन है यहाँ तेरा बस तेरे सिवा
न जाने तुझे अब भी क्यों लगता है
फिर उभरेगा वही अक्स तेरे ख्वाबो से
फिर से गूंजेगा ज़हन में कोई गीत नया
और सिमटेगा सितारा कोई निगाहों में
रहता  है हक़ीक़त के दायरे में मगर
बात करता  है बस अपने ख्वाबों से

कुछ शौक़ है यूँ तुझे खुशफहमी का
आज खुश है आँखों में बरसात लिए
तू जानता है कि ये कोई सावन नहीं 
तेरे हिस्से में शायद वो मौसम ही  नहीं 
फिर भी  मरते क्यों नहीं तेरे अरमान 
बेसबब बदहवासी लिए 
ढूंढता किसे है नादान ?