Monday, 17 August 2015

इन्द्रधनु.....

लेकर नयनों में  स्वप्न जाल 
तुम नया सवेरा  लाओगे 
हर  राह तुम्हारी होगी अब 
तुम जहाँ कहीं भी जाओगे 
सूरज  है तुम्हारी आँखों में 
तुम कहीं भी छुप ना पाओगे 
रात भरी इस दुनिया में 
तुम रोज़ उजाला लाओगे 
लहरों से सुर लेकर तुम 
गीत नया कुछ गाओगे 
हर शब्द लिए अरमानों का 
तुम खुद कविता बन जाओगे 
बंजर सी इस धरती पर 
तुम जीवन सलिल बहाओगे 
कोई बाँध नहीं टिक पायेगा 
तुम आगे बहते जाओगे 
हर सूखी डाली पर  एक दिन 
तुम  फूलों सी खिल जाओगे 
तुम "इन्द्रधनु " हो सपनों का 
तुम बाग़ कोई मेहकाओगे 



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