Monday, 3 August 2015

अधूरी निशानी ...

कभी जज़्बात की आँधी 
कभी हसरत की बरसातें 
मन को जूझना होगा 
कि है निर्मम यहाँ रातें 
किसी के पास सब  कुछ  है 
कोई हर पल तरसता है 
कहीं आँखों में सपने है 
कहीं सावन बरसता है 
कोई तो रास्ता होगा 
जहाँ से वक़्त गुज़रता हो 
होगा कोई गाँव ऐसा 
जहाँ कुछ पल ठहरता हो 
ये नदी है जीवन की 
है  इसकी धार में बहना 
बह जाओ तो बेघर हो 
वर्ना प्यासे  रहना 
न कोई चाह है फिर भी 
बड़ी तीखी उदासी है 
जो नींदों से जगाता हो 
ये कैसी बदहवासी  है 
नहीं है ख़्वाब  ये कोई 
ये मेरी ही कहानी है 
एक अधूरे मन की ये 
अधूरी सी निशानी है 

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