अनजान है तू इस शहर से कुछ
जो व्याकुल हो यूँ घूम रहा
संग्दिलों के तंग दिलों में
तू घर अपना ढूंढ रहा
कई बार बताया था तुझको
कुछ अपनी राह बदलने को
इन टेढ़ी -मेढ़ी सड़कों पर
कुछ टेढ़ा-मेढ़ा चलने को
बात सुनी न तूने तब
अपने मन में मशगूल रहा
सोच लिया मन निर्मल है
पर दुनिया को तू भूल गया
भूल गया कोई मोल नहीं है
यहाँ तेरे जज़्बातों का
तेरा अक्स यहाँ है सिर्फ मलिन
प्रतिबिम्ब किसी की आँखों का
जब बिखरेगी मन की माला
न होगा तार पिरोने को
तब अपमानित मन बोलेगा
अपनी फ़ितरत पर रोने को
आज मिला विष-दंश तुझे
तो क्यों फरियादें करता है
है नर-सर्पों का चक्रव्यूह
हर पल अभिमन्यू मरता है
जो व्याकुल हो यूँ घूम रहा
संग्दिलों के तंग दिलों में
तू घर अपना ढूंढ रहा
कई बार बताया था तुझको
कुछ अपनी राह बदलने को
इन टेढ़ी -मेढ़ी सड़कों पर
कुछ टेढ़ा-मेढ़ा चलने को
बात सुनी न तूने तब
अपने मन में मशगूल रहा
सोच लिया मन निर्मल है
पर दुनिया को तू भूल गया
भूल गया कोई मोल नहीं है
यहाँ तेरे जज़्बातों का
तेरा अक्स यहाँ है सिर्फ मलिन
प्रतिबिम्ब किसी की आँखों का
जब बिखरेगी मन की माला
न होगा तार पिरोने को
तब अपमानित मन बोलेगा
अपनी फ़ितरत पर रोने को
आज मिला विष-दंश तुझे
तो क्यों फरियादें करता है
है नर-सर्पों का चक्रव्यूह
हर पल अभिमन्यू मरता है
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