शब-ए-ग़म में जो चिराग़ जलाया होता
कम से कम साथ तेरे तेरा ही साया होता
तुझे तलाश थी जिस रहनुमा के हाथों की
छूँ लेता उसे जो हाथ बढ़ाया होता
दिख जाती उन्हें अपने हसीं रूह की झलक
उनकी तस्वीर जो आँखों में दिखाया होता
उनके आहट से ही बढ़ जाता है सूनापन
क्या होता जो वक़्त तन्हा ही बिताया होता
मुड़ जाती है हर राह कुछ उनके ही तरफ
कोई राह तो मेरी ओर भी आया होता
उनके अश्क़ों में छिपे नज़्म है जज़्बातों के
तू समझता जो कभी अश्क़ बहाया होता
वो समझते है ग़ज़ल हर्फ़ हैं काग़ज़ पे लिखे
बनता अफ़साना जो तूने उसे गाया होता
कम से कम साथ तेरे तेरा ही साया होता
तुझे तलाश थी जिस रहनुमा के हाथों की
छूँ लेता उसे जो हाथ बढ़ाया होता
दिख जाती उन्हें अपने हसीं रूह की झलक
उनकी तस्वीर जो आँखों में दिखाया होता
उनके आहट से ही बढ़ जाता है सूनापन
क्या होता जो वक़्त तन्हा ही बिताया होता
मुड़ जाती है हर राह कुछ उनके ही तरफ
कोई राह तो मेरी ओर भी आया होता
उनके अश्क़ों में छिपे नज़्म है जज़्बातों के
तू समझता जो कभी अश्क़ बहाया होता
वो समझते है ग़ज़ल हर्फ़ हैं काग़ज़ पे लिखे
बनता अफ़साना जो तूने उसे गाया होता
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