Monday, 3 August 2015

कृष्ण कहाँ से लाओगे ..

फिर भरी एक राज सभा में 
चीर-हरण करवाओगे 
हर आँख में दुःशाशन  है मन 
तुम कृष्ण कहाँ से लाओगे 
वो बात युगों पहले की थी 
जब  तुम पर आँख उठाई थी 
दे अपनी छाती का  लहू 
उसने  कीमत चुकाई थी 
आज अलग  दुनिया है कुछ 
तुम अब नहीं बच पाओगे 
हर आँख में दुःशाशन  है मन 
तुम कृष्ण कहाँ से लाओगे 
वो कालिख लेकर हाथों में 
रोज़ तुम्ही पर फेकेंगे 
ये दृष्टिवान् ध्रितराष्ट्र  सभी  
भर आँख तमाशा देखेंगे 
सदियों पहले के किस्से को 
तुम कैसे अब दोहराओगे 
हर आँख में दुःशाशन  है मन 
तुम कृष्ण कहाँ से लाओगे 
तड़प  लो चाहे  कितना  भी 
वो तरस कभी ना खाएंगे 
निज-कुत्सितता की अग्नि से 
हर रोज़ तुम्हे जलाएंगे 
व्यर्थ अनल में जाएगा 
तुम जितना नीर बहाओगे 
हर आँख में दुःशाशन  है मन 
तुम कृष्ण कहाँ से लाओगे 
ये महाभारत इस युग की है 
जहाँ कंस ध्वजा लहराएंगे 
लाख  दुहाई दोगे तुम 
पर मधुसूदन नहीं आएंगे 
इस ह्रदय-हीन  सभा में कैसे  
अपनी लाज बचाओगे 
हर आँख में दुःशाशन  है मन 
तुम कृष्ण कहाँ से लाओगे 






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