Tuesday, 1 September 2015

चलो अतीत के गाँव चलें ...

फिर हो कोई नया सवेरा 
फिर से कोई शाम ढले 
जी लें फिर बीते कल को 
चलो अतीत के गाँव चलें 

नव यौवन के शाखों पर 
फिर कलियाँ भरमार खिलें 
और भँवरों की गुंजन में 
वो बिसरे कल के गीत मिले 

चलो पुरानी यादों में  हम 
फिर नए कुछ ख्वाब चुने 
फिर आँखों से बात करें 
और सपनों का जाल बुने 

फिर से चलें उन राहों पर 
जहाँ अपनी ना पहचान  रहे  
खो जाएँ फिर बातों में 
ना समय का कोई ध्यान  रहे  

फिर मध्यम सी बारिश हो 
भीगे फिर से अन्तर्मन 
फिर हम तुम खामोश रहें 
और सुने हृदयों का प्रतिस्पंदन 

मैं और तुम हम जैसे हो 
एक बार चलो फिर साथ चलें 
जी लें फिर बीते कल को 
चलो अतीत के गाँव चलें 

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