बस एक टुकड़ा धूप का
और आधी प्याली बारिश
मेज़ पर बिखरे हैं कुछ
हाथों से लिखे ख़त
कुछ मेरे, कुछ तुम्हारे
और कुछ में शायद हम
कुछ यादों के पन्ने
हवा में सरसराते हुए
जैसे की दास्ताँ तुम्हारी
मुझसे दोहराते हुए
कुछ में दिखती है वही
दिल को छूंती तुम्हारी हँसी
कुछ में मुस्कान वो झूठी सी,
दर्द को छिपाती हुई
तुम्हारी लिखावटों में
आज भी वही चेहरा है
जिसे पढ़ लेता था कभी
लफ्ज़-बा-लफ्ज़, हूबहू
यूँ लगता है तुम आज भी
वैसी ही हो, पहले जैसी
बिलकुल इन ख़तों की तरह
हज़ारों अल्फ़ाज़ों की बनी
कुछ उलझी -सुलझी पहेली सी
नहीं बदला है यहां भी कुछ
मेरे ख्यालों के इस आलिन्द में
वही धूप का सुनहला टुकड़ा
और बारिश की आधी प्याली है
करो यकीं कि अब भी देखता हूँ तुम्हे
उसी कुर्सी पर, जो आज भी खाली है
और आधी प्याली बारिश
मेज़ पर बिखरे हैं कुछ
हाथों से लिखे ख़त
कुछ मेरे, कुछ तुम्हारे
और कुछ में शायद हम
कुछ यादों के पन्ने
हवा में सरसराते हुए
जैसे की दास्ताँ तुम्हारी
मुझसे दोहराते हुए
कुछ में दिखती है वही
दिल को छूंती तुम्हारी हँसी
कुछ में मुस्कान वो झूठी सी,
दर्द को छिपाती हुई
तुम्हारी लिखावटों में
आज भी वही चेहरा है
जिसे पढ़ लेता था कभी
लफ्ज़-बा-लफ्ज़, हूबहू
यूँ लगता है तुम आज भी
वैसी ही हो, पहले जैसी
बिलकुल इन ख़तों की तरह
हज़ारों अल्फ़ाज़ों की बनी
कुछ उलझी -सुलझी पहेली सी
नहीं बदला है यहां भी कुछ
मेरे ख्यालों के इस आलिन्द में
वही धूप का सुनहला टुकड़ा
और बारिश की आधी प्याली है
करो यकीं कि अब भी देखता हूँ तुम्हे
उसी कुर्सी पर, जो आज भी खाली है
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