Wednesday, 9 September 2015

शाम यूँ उदास क्यों है....

ये  शाम यूँ उदास क्यों है
कई बार पहले भी है हुआ ऐसा
कुछ नया तो नहीं है खोने में 
फिर आज भारी है क्यों मन
क्यों साफ़ महसूस है वो फ़र्क़
किसी के होने और न होने में

बातें, जो तन्हाई से करी थी कभी
हर एक लफ्ज़ और मायने उनके
मुश्किल है समझना आज क्यों
या फिर समझा पाना खुदको
वो आवाज़, वो लफ़्ज़ों के सिलसिले 
वो बातों का सजिलापन 
वो विषयों की पेंचीदगियाँ 
सब कुछ एक पहेली सी लगती है 
क्या हुआ अचानक कि आज 
तन्हाई में है अकेलेपन की कसक 

यूँ तो खुद ही खुद से की थी 
कई मुलाकातें हसरतों भरी 
सुनी थी खुद से ख़्वाबों की कहानी 
खुद के अल्फ़ाज़ों में खुद की ज़ुबानी 
फिर आज बेरंग सा क्यों 
दिखता हूँ मैं रूबरू खुद से 
क्यूँ लगता है खुद की महफ़िल में 
खुद ही से रूठा हूँ मैं 

क्यों है बेसबब बेबसी की हवा ऐसी  
की उड़ा रही है आहिस्ता  से 
दिल पर जमी धूलों की परत 
क्या है सबब है किस कमी का असर 
डरा सा है ज़हन रूह बदहवास क्यों है 
क्या पता ये शाम यूँ उदास क्यों है  





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