Monday, 14 September 2015

तुम्हारी याद लिए....

ले चलो साथ मुझे 
वक़्त के उसी जगह 
छोड़ा था तन्हा जहाँ 
बस तुम्हारी याद लिए 

समाये थे  तुम साँसों में 
खिलते गुलों की महक लिए 
पुरवाईयों की पालकी पर 
जब चले थे तुम हवा बनकर 
था साथ हो चला मैं भी 
कपास के फोय की तरह 

अब तक न जान पाया हूँ 
किस ओर चला आया हूँ 
है कौन सी राहें ऐसी 
तुम तक जो न आ पाती हैं 
छोड़ा था कहाँ तुमने मुझे 
चुराके मुझ ही को मुझसे 

क्यों तुम ऐसा करते हो 
मेरी आँखें  रोज़ भरते हो 
झांको कभी इन आँखों में 
अपना ही चेहरा पाओगे 
मिलना है तुमसे ख्वाबों में  
कब तक मुझे जगाओगे  

दिखा दो राह अब मुझको 
आँखों में आफ़ताब लिए 
खड़ा हूँ मैं चौराहे पर 
बस तुम्हारी याद लिए 





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