Wednesday, 16 September 2015

कौन हो ...

कौन हो तुम ?
घिर आए मेरे आँगन में 
घने बादल बनकर 
सालों से रूखा पड़ा है 
घर , और किरायदार भी 
डराते हो क्यों ?
किसी बेमौसम के बारिश से 

कौन हो तुम  ? 
जो उड़ाते हो सूखे पत्तों को 
गिरे थे जो कभी 
फलदार किसी दरख़्त से 
ये अकेला सा चिराग़ 
घबराया सा है देखकर 
क्यों डराते हो उसे तूफ़ान से ?

कौन हो तुम  ? 
ले आते हो शोर बाज़ारों की 
यहां साँसों के सिवा 
किसी आवाज़ से सरोकार नहीं 
सो रहे हैं बड़ी देर से 
कुछ अरमां राज़ की चादर ओढ़े 
क्यों उन्हें अब नींद से जगाते हो ?



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