जाने क्यों भटकता है मन
बेसबब ,बेवजह बेताबी लिए
वक़्त की अंधी गलियों में
उस पुराने से घर को ढूंढता
जिसके दीवार पर लटकती होंगी
दो आधी तसवीरें मेरी, तुम्हारी
यादों में जहाँ साथ तुम्हारे
खुद को भी बिताया था कभी
क्या पता क्या कशिश थी वो
जो अब भी चले आते हो तुम
कभी आँखों में पानी
कभी हलक में प्यास बनकर
वो रुक्सत भी अजीब थी
जो चले आये तुम साथ मेरे
बन के मेरा सूनापन
और मिलने की कयास बनकर
ये अदा है पुरानी तुम्हारी
नज़रों से खेलने का फ़न
नज़र आना और छुप जाना
बादल और चाँद की तरह
यादों की लुका-छिपी का खेल
तुम्हे अब भी खूब आता है
यूँ लगता है खो जाना तुम्हारा
और मेरा ढूंढना तुम्हे भाता है
मेरा क्या ? मैं आज भी वैसा हूँ
आँख टिकाये वक़्त के मोड़ों पर
अब भी बैठा रहता हूँ बेख़बर
बेसब्री भरे इंतज़ार के पल लिए
कुछ नहीं बदला है मेरे हिस्से में
तबदीली न तुम में ही कुछ आई है
तुम ,मैं और लुका-छिपी का खेल
बस अब यादों में सिमट आई है
बेसबब ,बेवजह बेताबी लिए
वक़्त की अंधी गलियों में
उस पुराने से घर को ढूंढता
जिसके दीवार पर लटकती होंगी
दो आधी तसवीरें मेरी, तुम्हारी
यादों में जहाँ साथ तुम्हारे
खुद को भी बिताया था कभी
क्या पता क्या कशिश थी वो
जो अब भी चले आते हो तुम
कभी आँखों में पानी
कभी हलक में प्यास बनकर
वो रुक्सत भी अजीब थी
जो चले आये तुम साथ मेरे
बन के मेरा सूनापन
और मिलने की कयास बनकर
ये अदा है पुरानी तुम्हारी
नज़रों से खेलने का फ़न
नज़र आना और छुप जाना
बादल और चाँद की तरह
यादों की लुका-छिपी का खेल
तुम्हे अब भी खूब आता है
यूँ लगता है खो जाना तुम्हारा
और मेरा ढूंढना तुम्हे भाता है
मेरा क्या ? मैं आज भी वैसा हूँ
आँख टिकाये वक़्त के मोड़ों पर
अब भी बैठा रहता हूँ बेख़बर
बेसब्री भरे इंतज़ार के पल लिए
कुछ नहीं बदला है मेरे हिस्से में
तबदीली न तुम में ही कुछ आई है
तुम ,मैं और लुका-छिपी का खेल
बस अब यादों में सिमट आई है
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