कैसे कहूँ ये तुमसे
कि क्या हो तुम मेरे लिए
मैंने तो खुद को पाया है
तुम्हे ही तलाशते हुए
सुना है दिल से निकलते हुए
बेज़ुबान बातों के सिलसिले
वो बातें मेरी ख़ामोशी से
बातें, तुम्हारी आवाज़ लिए
मैंने देखा है तुम्हे
आखों की रौशनी की तरह
देखा है तुम्हे चांदनी बनकर
मेरे आँगन को जगमगाते हुए
अब भी घेर लेते हो मुझे
नाज़ुक सा रेशमी जाल लिए
तुम्हारी खुशबू में लिपटी हवाएं
समाती है मुझमे साँसें बनकर
इसलिए बेबाक़ सा हूँ
क्या कहूँ ? कैसे बताऊँ तुमको
खो चूका हूँ मैं तुम में शायद
कि दिखता हूँ खुद को सिर्फ
तुम्हारे आँखों के आईने में
हर नज़्म , हर ग़ज़ल हर लफ्ज़
लिखे हुए हर अलफ़ाज़ मेरे
नाकाबिल है सब तुम्हारे लिए
कैसे कहूँ ये तुमसे
कि क्या हो तुम मेरे लिए
कि क्या हो तुम मेरे लिए
मैंने तो खुद को पाया है
तुम्हे ही तलाशते हुए
सुना है दिल से निकलते हुए
बेज़ुबान बातों के सिलसिले
वो बातें मेरी ख़ामोशी से
बातें, तुम्हारी आवाज़ लिए
मैंने देखा है तुम्हे
आखों की रौशनी की तरह
देखा है तुम्हे चांदनी बनकर
मेरे आँगन को जगमगाते हुए
अब भी घेर लेते हो मुझे
नाज़ुक सा रेशमी जाल लिए
तुम्हारी खुशबू में लिपटी हवाएं
समाती है मुझमे साँसें बनकर
इसलिए बेबाक़ सा हूँ
क्या कहूँ ? कैसे बताऊँ तुमको
खो चूका हूँ मैं तुम में शायद
कि दिखता हूँ खुद को सिर्फ
तुम्हारे आँखों के आईने में
हर नज़्म , हर ग़ज़ल हर लफ्ज़
लिखे हुए हर अलफ़ाज़ मेरे
नाकाबिल है सब तुम्हारे लिए
कैसे कहूँ ये तुमसे
कि क्या हो तुम मेरे लिए
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