Sunday, 13 September 2015

तुम्हे आते देखा .....

वक़्त रुकता नहीं 
घड़ियाँ थमती नहीं 
थकी साँसों के मानिंद 
निकलती  चली जाती है 

है देखा मगर जो मैंने 
गुज़रते वक़्त के काफिले में 
कुछ पल पहचाने हुए से 
बगैर रफ़्तार थमे हुए से 
दिल के कोने में जमे हुए से 
ओस की बूदों सी हसीन 
धुंद की चादर ओढ़े 
उन पलों में आज बेसबब  
खुद को खो जाते देखा  
हाँ, आज फिर तुम्हे आते देखा 

वो घड़ियाँ, या की सदियाँ थी 
जो बीते थे इंतज़ार में 
वो साँसों की गिनतियाँ 
ताज़ा है ज़हन में आज भी 
वो रफ़्तार धड़कनों की 
और ख्यालों का खालीपन 
तुम्हारे ना होने में  तुमसे 
नज़दीकियों का एहसास 
सोच कर तुम बेवजह फिर रूठी हो 
आज अपने दिल  को मनाते देखा 
हाँ, आज फिर तुम्हे आते देखा 

मगर वक़्त है, वो रुकता नहीं 
चला जाता है किसी और गली 
देकर वही रुक्सति  की तड़प 
और सदियों का सूनापन 
कुछ हिज्र की तपिश 
और यादों का सुकून लिए 
फिर वीरान पड़े  चौराहे पर 
रुके पलों का गुलदस्ता लिए 
राहों को सजाते देखा 
हाँ, आज फिर तुम्हे आते देखा 




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