अजीब है कुछ यादों की बस्तियां
न तुम हो वहाँ और न मैं हूँ
और न है फ़ासला दरम्यां हमारे
कुछ पुराने कागज़ सिलवट भरे
मिटती हुई सियाही से लिखे
कांपते हाथों की लिखावट
दिल की धड़कनों की आवाज़ लिए
पुरानी धूल में दबे हुए
कुछ तस्वीरों के टुकड़े हैं
अक्स है उनमे तुम्हारी सी
और कुछ मुझ जैसी लगती है
इनमे ही बिखरा है वजूद
यूँ बिखेरा है वक़्त की उलझन ने
है नामुनासिब जोड़ पाना उन्हें
लौट आता हूँ कई बार अब भी
ज़हन की अँधेरी सी गलियों में
मुझसे मिलने के बहाने
तुम्हे तलाशते हुए
हाँ तुम, जिसमे खुदको पाया था कभी
वही तुम जो आज नहीं ज़ाहिर
या वो तुम , जो कभी थे ही नहीं
न तुम हो वहाँ और न मैं हूँ
और न है फ़ासला दरम्यां हमारे
कुछ पुराने कागज़ सिलवट भरे
मिटती हुई सियाही से लिखे
कांपते हाथों की लिखावट
दिल की धड़कनों की आवाज़ लिए
पुरानी धूल में दबे हुए
कुछ तस्वीरों के टुकड़े हैं
अक्स है उनमे तुम्हारी सी
और कुछ मुझ जैसी लगती है
इनमे ही बिखरा है वजूद
यूँ बिखेरा है वक़्त की उलझन ने
है नामुनासिब जोड़ पाना उन्हें
लौट आता हूँ कई बार अब भी
ज़हन की अँधेरी सी गलियों में
मुझसे मिलने के बहाने
तुम्हे तलाशते हुए
हाँ तुम, जिसमे खुदको पाया था कभी
वही तुम जो आज नहीं ज़ाहिर
या वो तुम , जो कभी थे ही नहीं
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