हर तरफ शोर है कसीदों का
तेरे हुस्न के चर्चे हैं बहुत
एक मैं ही हूँ जो आज तलक
बैठा हूँ, कोरा सा कागज़ लिए
इस सोच में लगायी सदियाँ मैंने
क्या लिखूँ ?जो कि तेरे लायक हो
शायरी तो तेरी आँखों में पढ़ी थी कभी
चुरा ली थी तभी तेरी बेखबरी में
चंद लफ्ज़ मैंने तेरी ख़ामोशी से
दराज़ो में अब वो भी नहीं है शायद
कुछ बह गए थे आँखों के सैलाब में
कुछ दफ़्न है सीने में ख़ामोशी ओढ़े
क्या लिखूँ कुछ सूझता नहीं मुझको
तेरी नज़रों को किस निगाह से देखूं मैं
कैसे कर दूँ बयां रंगत तेरे चेहरे की
बेरंग सी महज़ कोरे किसी कागज़ पर
तेरी आँखों में देखा है जो आसमां मैंने
उसे अल्फ़ाज़ों में किस तरह मैं कैद करूँ
सदा रहेगी ये कमी मेरे फ़न में शायद
तेरे मुरीदों में कभी मैं न गिना जाऊँगा
है मेरे पास नहीं कोई ग़ज़ल काबिल तेरे
न है कोई लफ्ज़, तेरे बारे में जो बोल सके
तुझमे देखा है मैंने ज़िन्दगी को जीते हुए
मुर्दे अल्फ़ाज़ों से मैं क्या लिखूँ मुझको ये बता
तेरे हुस्न के चर्चे हैं बहुत
एक मैं ही हूँ जो आज तलक
बैठा हूँ, कोरा सा कागज़ लिए
इस सोच में लगायी सदियाँ मैंने
क्या लिखूँ ?जो कि तेरे लायक हो
शायरी तो तेरी आँखों में पढ़ी थी कभी
चुरा ली थी तभी तेरी बेखबरी में
चंद लफ्ज़ मैंने तेरी ख़ामोशी से
दराज़ो में अब वो भी नहीं है शायद
कुछ बह गए थे आँखों के सैलाब में
कुछ दफ़्न है सीने में ख़ामोशी ओढ़े
क्या लिखूँ कुछ सूझता नहीं मुझको
तेरी नज़रों को किस निगाह से देखूं मैं
कैसे कर दूँ बयां रंगत तेरे चेहरे की
बेरंग सी महज़ कोरे किसी कागज़ पर
तेरी आँखों में देखा है जो आसमां मैंने
उसे अल्फ़ाज़ों में किस तरह मैं कैद करूँ
सदा रहेगी ये कमी मेरे फ़न में शायद
तेरे मुरीदों में कभी मैं न गिना जाऊँगा
है मेरे पास नहीं कोई ग़ज़ल काबिल तेरे
न है कोई लफ्ज़, तेरे बारे में जो बोल सके
तुझमे देखा है मैंने ज़िन्दगी को जीते हुए
मुर्दे अल्फ़ाज़ों से मैं क्या लिखूँ मुझको ये बता
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