लो उड़ चला परिंदा
उस टोह की कशिश में
जहाँ छाँव हो घड़ी भर
हर धूप की तपिश में
भले न हो सजीला
और ना ही कोई घर हो
मगर खुले वहाँ पर
बस दिलों के दर हो
न ख़ुशनुमा हो मौसम
ना हो हवा रूमानी
दिखे मगर सभी को
आँखों का बहता पानी
हो मुफलिसी का आलम
या मुश्किलों का डेरा
मगर हो तय जहां पर
हर रात का सवेरा
ना चांदनी में लिपटे
हो रात के सितारे
दिलक़शी के काबिल
भले न हो नजारें
वो ढूंढता है घर जो
बदहाल ही भले हो
मगर वहाँ दिलों के
कुछ दीप तो जले हो
है सोचता परिंदा
वो टोह कुछ जुदा हो
ना मोह की बनी हो
उस टोह में खुदा हो
उस टोह की कशिश में
जहाँ छाँव हो घड़ी भर
हर धूप की तपिश में
भले न हो सजीला
और ना ही कोई घर हो
मगर खुले वहाँ पर
बस दिलों के दर हो
न ख़ुशनुमा हो मौसम
ना हो हवा रूमानी
दिखे मगर सभी को
आँखों का बहता पानी
हो मुफलिसी का आलम
या मुश्किलों का डेरा
मगर हो तय जहां पर
हर रात का सवेरा
ना चांदनी में लिपटे
हो रात के सितारे
दिलक़शी के काबिल
भले न हो नजारें
वो ढूंढता है घर जो
बदहाल ही भले हो
मगर वहाँ दिलों के
कुछ दीप तो जले हो
है सोचता परिंदा
वो टोह कुछ जुदा हो
ना मोह की बनी हो
उस टोह में खुदा हो
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